पतंग पाठ योजना | Patang Path Yojana | आरोह भाग-2 | कक्षा 12 हिंदी अनिवार्य
नमस्कार शिक्षक साथियों! ‘शिक्षक कॉर्नर’ में आपका स्वागत है। आज हम आपके लिए RBSE कक्षा 12 हिंदी अनिवार्य के लिए NCERT की पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ के काव्य खंड के पाठ 2 “आलोक धन्वा” की प्रसिद्ध कविता ‘पतंग’ के लिए एक विस्तृत और गहन पाठ योजना प्रस्तुत कर रहे हैं। यह Patang Path Yojana आपके कक्षा शिक्षण को आसान बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है, ताकि आपको विस्तृत व्याख्या, काव्य सौंदर्य, NCERT हल और परीक्षा-केंद्रित अभ्यास जैसी हर आवश्यक सामग्री एक ही स्थान पर मिल सके।
इस लेख में आप क्या पढ़ेंगे
पाठ अवलोकन
विवरण | जानकारी |
कक्षा | 12 |
विषय | हिंदी (अनिवार्य) |
पुस्तक | आरोह भाग-2 (काव्य खंड) |
पाठ | 2. पतंग |
कवि | आलोक धन्वा |
अनुमानित समय | 45 मिनट (1 कालांश) |
शैक्षणिक उद्देश्य एवं सामग्री
सीखने के उद्देश्य (Learning Objectives)
- विद्यार्थी शरद ऋतु के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कर सकेंगे।
- विद्यार्थी कविता में बच्चों की उमंगों, कल्पनाओं और क्रियाकलापों का विश्लेषण कर सकेंगे।
- विद्यार्थी कविता में प्रयुक्त बिंबों और अलंकारों की पहचान और व्याख्या कर सकेंगे।
- विद्यार्थी RBSE परीक्षा पैटर्न के अनुसार सभी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम हो सकेंगे।
आवश्यक सामग्री (Required Materials)
- पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’
- श्यामपट्ट/व्हाइटबोर्ड और मार्कर/चॉक
- शरद ऋतु और पतंग उड़ाते बच्चों के चित्रों वाला चार्ट (वैकल्पिक)
कवि परिचय: आलोक धन्वा
1. जीवन परिचय
आलोक धन्वा का जन्म सन् 1948 में बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था। वे सातवें-आठवें दशक के एक प्रमुख जनवादी कवि हैं। कवि होने के साथ-साथ वे पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में एक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में भी सक्रिय रहे हैं।
2. साहित्यिक परिचय
आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में ही अपनी गिनी-चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-73 में प्रकाशित उनकी आरंभिक कविताएँ काव्य-प्रेमियों को ज़बानी याद रही हैं। इतनी प्रसिद्धि के बावजूद उन्होंने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया।
3. प्रमुख रचनाएँ
इनकी पहली कविता ‘जनता का आदमी’ 1972 में प्रकाशित हुई। इसके बाद ‘भागी हुई लड़कियाँ’ और ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ से इन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली। इनका एकमात्र काव्य संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ सन् 1998 में प्रकाशित हुआ।
4. प्रमुख सम्मान
इन्हें राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान और पहल सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
5. भाषा-शैली
आलोक धन्वा की भाषा सीधी, सपाट और बिंबात्मक है। वे आम आदमी की संवेदनाओं को अपनी कविताओं में व्यक्त करते हैं, जिससे पाठक आसानी से जुड़ जाता है।
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (कक्षा के लिए विस्तृत गाइड)
1. पूर्व ज्ञान से जोड़ना (Engage – 5 मिनट)
कक्षा की शुरुआत इन प्रश्नों से करें ताकि विषय के प्रति छात्रों की रुचि जागृत हो सके:
- बच्चों, आपको कौन-सा मौसम सबसे अच्छा लगता है और क्यों?
- बारिश के बाद जब आसमान साफ हो जाता है, तो आपको कैसा महसूस होता है?
- क्या आप में से किसी ने कभी पतंग उड़ाई है? पतंग उड़ाने का अनुभव कैसा होता है?
2. पाठ की प्रस्तुति (Explore & Explain – 20 मिनट)
सस्वर वाचन: उचित हाव-भाव, लय और आरोह-अवरोह के साथ कविता का सस्वर वाचन करें।
पद्यांश-वार विस्तृत व्याख्या:
पद्यांश 1: “सबसे तेज़ बौछारें … ऊपर उठ सके-“
शब्दार्थ: बौछारें – वर्षा की झड़ी, भादो – वर्षा ऋतु का एक महीना, शरद – एक ऋतु, मुलायम – नरम।
सरलार्थ: कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु का भादों का महीना समाप्त हो गया है, जिसमें सबसे तेज़ बारिश होती थी। अब शरद ऋतु का आगमन हो गया है। सुबह का आकाश खरगोश की आँखों की तरह लाल और चमकीला दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है मानो शरद ऋतु रूपी कोई बालक कई पुलों को पार करते हुए अपनी नई चमकीली साइकिल को तेज़ी से चलाता हुआ और ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाता हुआ आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को बुला रहा है। उसने आकाश को इतना नरम और साफ़ बना दिया है ताकि बच्चों की पतंग आसानी से ऊपर उठ सके।
पद्यांश 2: “दुनिया की … नाजुक दुनिया”
शब्दार्थ: कमानी – बाँस का टुकड़ा, किलकारियाँ – खुशी में चिल्लाना, नाजुक – कोमल।
सरलार्थ: कवि कामना करते हैं कि आकाश इतना अनुकूल हो जाए कि दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज़ (पतंग) उड़ सके। दुनिया का सबसे पतला कागज़ और बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग आसमान में ऊँची उठ सके। और इसके साथ ही बच्चों की सीटियों, किलकारियों और तितलियों जैसी रंग-बिरंगी कल्पनाओं की कोमल दुनिया शुरू हो सके।
पद्यांश 3: “जन्म से ही … वेग से अकसर”
शब्दार्थ: कपास – कोमलता का प्रतीक, बेसुध – बिना होश के, मृदंग – वाद्य यंत्र, पेंग भरते हुए – झूलते हुए।
सरलार्थ: कवि कहते हैं कि बच्चे जन्म से ही कपास जैसी कोमलता और लचीलापन लेकर आते हैं। उनकी कोमल भावनाएँ और मुलायम शरीर हर चोट को सहन करने की क्षमता रखता है। जब वे बेसुध होकर दौड़ते हैं, तो ऐसा लगता है मानो पृथ्वी स्वयं घूमकर उनके बेचैन पैरों के पास आ जाती है। वे अपनी पदचापों से सभी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा संगीत भर देते हैं। वे किसी पेड़ की डाल की तरह लचीली गति से एक छत से दूसरी छत पर झूलते हुए चले जाते हैं।
पद्यांश 4: “छतों के … रंध्रों के सहारे”
शब्दार्थ: रोमांचित – पुलकित, रंध्र – शरीर के छिद्र।
सरलार्थ: बच्चे दौड़ते-दौड़ते छतों के खतरनाक किनारों तक पहुँच जाते हैं। उस समय उन्हें कोई और नहीं, बल्कि उनके शरीर का रोमांच और संगीत ही गिरने से बचाता है। ऐसा लगता है मानो पतंगों की धड़कती हुई ऊँचाइयाँ उन्हें केवल एक धागे के सहारे थाम लेती हैं। बच्चे भी पतंगों के साथ-साथ अपनी कल्पनाओं और शरीर के रोम-रोम के सहारे उड़ रहे होते हैं।
पद्यांश 5: “अगर वे … पैरों के पास।”
शब्दार्थ: निडर – बिना डरे, सुनहले – सुनहरे।
सरलार्थ: कवि कहते हैं कि यदि बच्चे कभी छतों के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं और बच जाते हैं, तो उनका डर समाप्त हो जाता है। वे और भी अधिक निडर होकर सुनहरे सूरज के सामने आते हैं, अर्थात वे और अधिक उत्साह और साहस के साथ अगले दिन का सामना करते हैं। तब पृथ्वी और भी तेज़ी से घूमती हुई उनके बेचैन पैरों के पास आती है, अर्थात वे और भी तेज गति से दौड़ते हैं।
3. सौंदर्य बोध (Elaborate – 10 मिनट)
भाव पक्ष: इस कविता में बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण है। बच्चों के साहस, उमंग, कल्पना और निर्भयता को बहुत ही सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है। पतंग बच्चों की रंगीन कल्पनाओं और ऊँची आकांक्षाओं का प्रतीक है।
कला पक्ष:
- भाषा: सरल, सहज और प्रवाहमयी खड़ी बोली।
- बिंब योजना: कविता बिंबों से भरी हुई है (जैसे- ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’ – दृश्य बिंब, ‘घंटी बजाते हुए’ – श्रव्य बिंब, ‘आकाश को मुलायम बनाते हुए’ – स्पर्श बिंब)।
- अलंकार: उपमा, मानवीकरण, पुनरुक्ति प्रकाश जैसे अलंकारों ने कविता के सौंदर्य को बढ़ा दिया है।
4. मूल्यांकन (Evaluate – 10 मिनट)
कक्षा-कार्य: छात्रों से पूछें: ‘कपास’ शब्द बच्चों के लिए क्यों प्रयोग किया गया है? गिरकर बचने के बाद बच्चों में क्या परिवर्तन आता है?
गृहकार्य: NCERT अभ्यास के प्रश्न संख्या 1, 4, और 6 तथा RBSE परीक्षा केंद्रित अभ्यास से सप्रसंग व्याख्या का प्रश्न हल करने के लिए दें।
NCERT अभ्यास-प्रश्नों के विस्तृत हल
प्रश्न 1: ‘सबसे तेज़ बौछारें गयीं…’ के बाद प्रकृति में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर: ‘सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया’ के बाद कवि ने शरद ऋतु के आगमन का वर्णन किया है। इस समय प्रकृति में कई मनमोहक परिवर्तन आते हैं। वर्षा ऋतु की विदाई के साथ ही आकाश एकदम साफ, निर्मल और चमकीला हो जाता है। सुबह का सूरज खरगोश की लाल-लाल आँखों जैसा सुंदर दिखाई देता है। धूप चमकीली और सुखद हो जाती है। हवा में नमी कम हो जाती है और वातावरण उत्साहवर्धक बन जाता है। कवि ने इस पूरे दृश्य का मानवीकरण करते हुए कहा है कि शरद ऋतु रूपी बालक अपनी चमकीली साइकिल पर सवार होकर आया है, जो इस बात का प्रतीक है कि मौसम पतंगबाजी जैसे खेलों के लिए पूरी तरह अनुकूल हो गया है।
प्रश्न 2: पतंग के लिए ‘सबसे हलकी’, ‘सबसे पतला’ जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों हुआ है?
उत्तर: कवि ने पतंग के लिए ‘सबसे हलकी और रंगीन चीज़’, ‘सबसे पतला कागज़’, और ‘सबसे पतली कमानी’ जैसे विशेषणों का प्रयोग करके उसके विशेष स्वरूप और बच्चों की कोमल भावनाओं के साथ उसके संबंध को दर्शाया है। ये विशेषण पतंग के अत्यधिक हल्केपन, रंगीनियत और कोमलता को उजागर करते हैं, जो बच्चों के मन, उनके सपनों और उनकी नाजुक दुनिया का प्रतीक हैं।
प्रश्न 3: बिंब स्पष्ट करें।
उत्तर:
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा: यह एक स्थिर दृश्य (चाक्षुष) बिंब है।
शरद आया पुलों को पार करते हुए: यहाँ शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है और एक गतिशील दृश्य बिंब है。
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से: यहाँ गतिशील दृश्य बिंब के साथ-साथ श्रव्य बिंब (घंटी की आवाज़) भी है।
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए: यहाँ स्पर्श बिंब है।
प्रश्न 4: ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ – कपास से बच्चों का क्या संबंध है?
उत्तर: कपास और बच्चों के बीच गहरा संबंध है। कपास की प्रकृति नरम, हल्की, चोट सहन करने वाली और शुद्ध होती है। बच्चों का शरीर भी जन्म के समय बहुत कोमल और नाजुक होता है। वे कपास की तरह ही चोट को सहन करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। गिरने-पड़ने पर भी वे फिर से उठकर खेलने लगते हैं। इसके अलावा, कपास बच्चों की निर्मल और पवित्र भावनाओं का भी प्रतीक है।
प्रश्न 5: ‘पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं।’ – बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है?
उत्तर: बच्चों का उड़ान से गहरा और आत्मीय संबंध है। जब बच्चे पतंग उड़ाते हैं, तो वे मानसिक और भावनात्मक रूप से पतंग के साथ एकाकार हो जाते हैं। जैसे-जैसे पतंग आकाश में ऊँची उठती है, बच्चों का मन भी कल्पनाओं और सपनों के आकाश में उड़ने लगता है। यह उड़ान उनकी असीम इच्छाओं, आकांक्षाओं और स्वतंत्रता की चाह का प्रतीक है।
प्रश्न 6: निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(क) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इसका तात्पर्य है कि जब बच्चे छतों पर उत्साह में दौड़ते हैं, तो उनकी पदचापों से चारों दिशाओं में एक मधुर ध्वनि गूंजने लगती है, जो मृदंग जैसे संगीत वाद्ययंत्र की तरह लयबद्ध और आनंददायक होती है।
(ख) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?
उत्तर: नहीं, उस समय सारा ध्यान पतंग पर केंद्रित होता है और मन उत्साह से भरा होता है। इस रोमांच में शरीर को बाहरी कठोरता का अनुभव नहीं होता।
(ग) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?
उत्तर: खतरनाक परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करने के बाद व्यक्ति का आत्मविश्वास और साहस बढ़ जाता है। मन से डर निकल जाता है और वह पहले से अधिक निडर हो जाता है।
RBSE परीक्षा-केंद्रित अभ्यास
कवि परिचय (उत्तर सीमा 80 शब्द)
प्रश्न: कवि आलोक धन्वा का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर: आलोक धन्वा सातवें-आठवें दशक के एक प्रमुख जनवादी कवि हैं। उनका जन्म 1948 में बिहार के मुंगेर में हुआ था। उन्होंने बहुत छोटी अवस्था में अपनी गिनी-चुनी कविताओं, जैसे ‘जनता का आदमी’ और ‘भागी हुई लड़कियाँ’, से ही अपार लोकप्रियता अर्जित की। वे एक कवि होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी रहे हैं। उनका एकमात्र काव्य संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ 1998 में प्रकाशित हुआ। उनकी भाषा सीधी, सपाट और बिंबात्मक है, जो आम आदमी की संवेदनाओं को व्यक्त करती है।
सप्रसंग व्याख्या
पद्यांश: “जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास… डाल की तरह लचीले वेग से अकसर”
संदर्भ: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि आलोक धन्वा की कविता ‘पतंग’ से उद्धृत है।
प्रसंग: यहाँ कवि ने बच्चों के कोमल शरीर, उनकी चंचलता और उनकी निर्बाध गति का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि बच्चे जन्म से ही कपास जैसी कोमलता और लचीलापन लेकर आते हैं। जब वे बेसुध होकर दौड़ते हैं, तो ऐसा लगता है मानो पृथ्वी स्वयं घूमकर उनके बेचैन पैरों के पास आ जाती है। वे अपनी पदचापों से सभी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा संगीत भर देते हैं।
विशेष: (1) भाषा सरल और बिंबात्मक है। (2) ‘कपास’ कोमलता का प्रतीक है। (3) ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में श्रव्य बिंब है। (4) मुक्त छंद का प्रयोग है।
बहुचयनात्मक प्रश्न (MCQ)
1. ‘पतंग’ कविता में किस ऋतु का वर्णन किया गया है?
2. कवि ने ‘कपास’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 20 शब्द)
प्रश्न 1: शरद ऋतु बच्चों के झुंड को कैसे बुलाती है?
उत्तर: शरद ऋतु चमकीली साइकिल पर घंटी बजाते हुए और चमकीले इशारों से बच्चों के झुंड को पतंग उड़ाने के लिए बुलाती है।
प्रश्न 2: बच्चे छतों के खतरनाक किनारों से गिरने से कैसे बच जाते हैं?
उत्तर: बच्चे अपने शरीर के रोमांच, लचीलेपन और संगीत के कारण ही छतों के खतरनाक किनारों से गिरने से बच जाते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 40 शब्द)
प्रश्न 1: ‘पतंग’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘पतंग’ कविता का प्रतिपाद्य बाल सुलभ चेष्टाओं, उमंगों और सपनों का सजीव चित्रण करना है। कवि ने पतंग को बच्चों की रंगीन कल्पनाओं का प्रतीक बनाया है। यह कविता दर्शाती है कि बच्चे किस प्रकार हर बाधा और जोखिम की परवाह किए बिना अपने सपनों को ऊँचाई देने के लिए उत्साहित रहते हैं।
प्रश्न 2: ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ – इस पंक्ति में ‘कपास’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: इस पंक्ति में ‘कपास’ के माध्यम से कवि बच्चों के कोमल, हल्के और चोट सहने वाले शरीर की ओर संकेत करते हैं। जिस प्रकार कपास नरम होती है, उसी प्रकार बच्चों का शरीर भी लचीला होता है, जो उन्हें गिरने पर भी गंभीर चोट से बचाता है।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 60-80 शब्द)
प्रश्न 1: ‘पतंग’ कविता में बच्चों की उमंगों और क्रियाकलापों का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: ‘पतंग’ कविता में कवि आलोक धन्वा ने बच्चों की उमंगों का अत्यंत जीवंत चित्रण किया है। बच्चे शरद ऋतु के आगमन पर उत्साहित होकर पतंग उड़ाने के लिए छतों पर दौड़ते हैं। वे इतने बेसुध होते हैं कि उन्हें छतों के खतरनाक किनारों का भी डर नहीं लगता। उनका शरीर कपास की तरह कोमल और लचीला होता है। वे अपनी किलकारियों से दिशाओं को संगीतमय बना देते हैं। पतंग की उड़ान के साथ वे भी अपनी कल्पनाओं में उड़ते हैं और गिरने का डर भी उन्हें रोक नहीं पाता, बल्कि और निडर बना देता है।
प्रश्न 2: ‘पतंग’ कविता में चित्रित प्राकृतिक सौंदर्य और बाल-मनोविज्ञान के अंतर्संबंध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कविता में प्रकृति बच्चों की सहायक बनकर आती है। शरद ऋतु का आगमन, चमकीला सवेरा और मुलायम आकाश, ये सभी प्राकृतिक परिवर्तन बच्चों के खेलने और पतंग उड़ाने के लिए एक आदर्श वातावरण बनाते हैं। प्रकृति बच्चों की उमंगों को बढ़ाती है और बच्चे अपनी क्रियाओं से प्रकृति को और भी जीवंत बना देते हैं। इस प्रकार, प्रकृति और बाल-मनोविज्ञान एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
इस कविता का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इस कविता का मुख्य उद्देश्य पतंग के बहाने बच्चों के मन की उमंगों, उनकी निर्भीकता, कल्पनाशीलता और जीवन के प्रति उनके उत्साह को व्यक्त करना है।
“पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास” का क्या आशय है?
इस पंक्ति का आशय यह है कि बच्चे अपनी धुन में इतने मग्न होकर दौड़ते हैं कि उन्हें दिशाओं का या दूरी का कोई ध्यान नहीं रहता। उनकी गति और ऊर्जा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो वे स्थिर हैं और सारी पृथ्वी स्वयं चलकर उनके कदमों को चूमने के लिए उनके पास आ रही है।
‘कपास’ और बच्चों के बीच क्या संबंध दर्शाया गया है?
कवि ने बच्चों के शरीर को कपास की तरह नरम, हल्का और चोट सहने वाला बताया है। जिस प्रकार कपास शुद्ध और कोमल होती है, उसी प्रकार बच्चों का मन और शरीर भी निर्मल और लचीला होता है, जो उन्हें गिरने-पड़ने पर भी गंभीर चोट से बचाता है।
हम आशा करते हैं कि आलोक धन्वा की ‘पतंग’ कविता पर आधारित यह विस्तृत पाठ योजना आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। इस Patang Path Yojana को शिक्षकों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है ताकि आपको एक ही स्थान पर संपूर्ण शिक्षण और परीक्षा सामग्री मिल सके। अपने विचार और सुझाव हमें कमेंट्स में अवश्य बताएं।