इस पोस्ट में कक्षा 12 अनिवार्य हिंदी की पुस्तक वितान भाग दो(vitan-chapter2 )के पाठ दो जूझ(joojh) आत्मकथा का सारांश (summary) सरल भाषा में दिया जा रहा है , जिससे यह पाठ आसानी से समझ आ जायेगा |
जूझ आत्मकथा - summary
लेखक की पढ़ने की इच्छा
जूझ(joojh)आत्मकथा का कथानायक आनंद यादव पढ़ना चाहते हैं, परन्तु उनका पिता उसे पाठशाला भेजने के स्थान पर खेतों पर काम करने भेज देता है ताकि खुद गांव में अय्यासी कर सके |
एक दिन लेखक अपनी माँ से अपनी पढाई की बात करता है और कहता है कि माँ दत्ताजी राव के पास चलते हैं , वे दादा को समझा देंगे
दत्ताजी राव का प्रोत्साहन
दत्ताजी राव लेखक के पिता को डाँटते हैं और लेखक को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं | लेकिन लेखक के संघर्षो का अंत नही हैं |
पाठशाला में पहला दिन
प्रथम दिन ही पाठशाला के सहपाठियों ने उसे खूब तंग किया , यहाँ तक कि कक्षा के एक शरारती बालक ने लेखक का गमछा टेबल पर रख दिया ताकि मास्टर से मार पड़वा सके | खिलौने के लिए बनाए गए कौआ के बच्चे को खुले मे रखा देने पर जैसे कौए चारो ओर से उस पर चोंच मारते हैं , वेसा ही लेखक का हाल हो गया था | एक बार तो लेखक के मन में आया कि पाठशाला से अच्छा तो खेत ही है , कमसे – कम वहां कोई तंग तो नही करता है |
पाठशाला में विश्वास बढ़ना
धीरे – धीरे स्थितियां सामान्य होने लगी |कक्षा मे लेखक की मित्रता बसंत पाटिल नाम के एक लड़के से हो गयी , जो गणित मे होशियार था दोनों ही गणित के अध्यापक (मंत्री नामक मास्टर ) के प्रिय विद्यार्थी बन गए | गणित के मास्टर जी दोनों से अन्य छात्रो की कोपियाँ जाँच करवाते थे | अब लेखक का मन पाठशाला मे लगने लगा | लेखक का विश्वास पाठशाला मे बढ़ने लगा |
कविता मे रूचि जाग्रत होना
मास्टर सौन्दलगेकर (मराठी भाषा के अध्यापक ) कविताओं को गाकर और अभिनय के साथ पढाता हैं | मास्टर जी की यह शेली लेखक को अच्छी लगाती है और कविता मे रूचि जाग्रत हो जाती है |
कविता लिखना
अब तो लेखक खेतो में काम करते करते , भैंस चराते- चराते फसलों पर , जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा | लेखक को अकेले रहना अच्छा लगने लगा | कभी पेन कागज नही होने पर भैंस की पीठ पर लकड़ी या पत्थर से लिख लेते थे |
मास्टर सौन्दलगेकर का लेखक के जीवन पर प्रभाव
कविता लिखकर मास्टर जी को दिखाने और मास्टर जी के कविता लिखने के नियम समझाने के कारण लेखक मास्टर जी के नजदीक पहुँच गया और जाने – अनजाने लेखक की मराठी भाषा सुधरने लगी | अलंकार , छंद , लय आदि को सूक्ष्मता से देखने लगा और ऐसा लगने लगा कि मन में कोई मधुर बाजा बजता रहता है |